मुखौटा

मैंने कईयों को अपना टूटा ख्वाब पिरोते देखा है।
दिन भर हसने वाला चेहरा रात में रोते देखा है।
उनकी दिन भर की वो खुशी क्या कोई छलावा बस एक था
मैंने अक्सर लोगो को अपना तकिया भिगोते देखा है।

हर सुबह एक मुखौटा ओढ़, वो सारे बस चल पड़ते है,
पावों में पहिये बांधकर, सुइयों से घड़ियों की लड़ते है।
दिनभर की वो चहलपहल, वो भीड़ का हिस्सा बन जाना,
कैसे हो के हर होते सवाल पे ठीक हूं कह के बतियाना।
मैंने उनके इस झूठ में उनको दर्द डुबोते देखा है।
मैंने कईयों को अपना...

सूरज की धुप में इन सब का ग़म ढका ढका रह जाता है,
भीड़ की चादर में टूटा मन कुछ छुपा छुपा रह जाता है।
अपने अपने दिल के अंदरके जलते सूरज से लड़ते है,
रात के अंधेरे में अपनी तन्हाई में ये बिखरते है।
दिन भर की वो नकली ताकत उनको मैंने रात में खोते देखा है।
मैंने कईयों को अपना...

दिन भर इनके गाने भी अलग, हरकते अलग सी होती है,
वहीं रात मै बेचैनी इनकी खून के आंसू रोती है।
वो तन्हाई, बीती यादे, खयालों में इनके जब छाती है,
जो छूट गया, या था ही नहीं , उसकी भी याद इन्हे आती है।
उन खुशमीजाजो को रात में गम के नगमे सुनते देखा है।
मैंने कईयों को अपना...



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